Rani Laxmi Bai - The Warrior Queen Of Jhansi

 

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Rani Laxmi Bai - The Warrior Queen Of Jhansi


            हमारे  देश  की  स्वतंत्रता  के  लिए  अनेक  राजाओं  ने  लड़ाइयाँ  लड़ी  और  इस  कोशिश  में  हमारे  देश  की  वीर  तथा  साहसी  स्त्रियों  ने  भी  उनका  साथ  दिया। रानी  लक्ष्मीबाई  ने  हमारे  देश  और  अपने  राज्य  झाँसी  की  स्वतंत्रता  के  लिए  ब्रिटिश  राज्य  के  खिलाफ  लड़ने  का  साहस  किया  और  अंत  में  वीरगति  को  प्राप्त  हुई। 

> रानी लक्ष्मीबाई भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी वीरांगनाओं में से एक थीं। 

> रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 को काशी में हुआ। पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी बाई था।

> रानी लक्ष्मीबाई का वास्तविक नाम मणिकर्णिका था। लक्ष्मीबाई का उपनाम मणिकर्णिका था, इसीलिए अपने बाल्यकाल में वे मनुबाई के नाम से जानी जाती थीं।

> उनके  पिता  मोरोपंत  ताम्बे  बिठुर  में  न्यायलय  में  पेशवा  थे  और  इसी  कारण  वे  इस  कार्य  से  प्रभावित  थी  और  उन्हें  अन्य  लड़कियों  की  अपेक्षा  अधिक  स्वतंत्रता  भी  प्राप्त  थी, उनकी  शिक्षा – दीक्षा  में  पढाई  के  साथ – साथ  आत्म – रक्षा,  घुड़सवारी,  निशानेबाजी  और  घेराबंदी  का  प्रशिक्षण  भी  शामिल  था। उन्होंने  अपनी  सेना  भी  तैयार  की   थी। 

> रानी  लक्ष्मीबाई  में  अनेक  विशेषताएँ  थी, जैसे नियमित योगाभ्यास करना, धार्मिक कार्यों  में  रूचि, सैन्य कार्यों  में  रूचि  एवं  निपुणता, उन्हें घोड़ो  की  अच्छी  परख  थी, रानी अपनी  का  प्रजा  का  समुचित  प्रकारसे ध्यान  रखती  थी, गुनाहगारो को उचित सजा देने की भी हिम्मत  रखती  थी। 

> रानी लक्ष्मीबाई नाना साहेब और तात्या टोपे के साथ बड़ी हुईं, जो स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले पहले विद्रोह में सक्रिय भागीदारी रहे थे।

> सन  1842 में  उनका विवाह उत्तर भारत में स्थित झाँसी राज्य के महाराज गंगाधरराव नेवलेकर के  साथ हो गया,  तब  वे  झाँसी  की  रानी  बनी। उस  समय  वे  मात्र  14  वर्ष  की  थी। विवाह के पश्चात् ही उन्हें ‘लक्ष्मीबाई’ नाम  मिला। 

> वर्ष 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गई।

> इस दुखद घटना के बाद, झांसी के महाराजा ने दामोदर राव को अपने बेटे के रूप में अपनाया था।  अपने बेटे की मृत्यु विचलित और खराब स्वास्थ्य की वजह से 21 नवंबर 1853 में महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। 

> जब महाराज गंगाधर राव की मृत्यु हुई, उस समय रानी लक्ष्मीबाई सिर्फ अट्ठारह साल की थी, लेकिन रानी लक्ष्मी बाई ने अपना साहस नहीं खोया और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे ढंग से निभाया।

> उस समय भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी, जो एक बहुत ही चतुर व्यक्ति था और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने के लिए झांसी के दुर्भाग्यपूर्ण समय का लाभ उठाने का प्रयास किया। 

> ब्रिटिश शासकों ने कम उम्र के दामोदर राव को दिवंगत महाराजा गंगाधर राव और रानी लक्ष्मीबाई के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया।

> ब्रिटिश शासकों की इस योजना के पीछे झांसी का राज्य हड़प की नीति थी, क्योंकि उनके मुताबिक रानी लक्ष्मीबाई का कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था।

> मार्च 1854 में, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को 60,000 की वार्षिक पेंशन और झांसी के किले को छोड़ने का आदेश दिया गया था। रानी लक्ष्मीबाई ने भी झांसी ब्रिटिश साम्राज्य के आधिपत्य न छोड़ने दृढ़ निश्चय कर लिया था।

> 7 मार्च, 1854  को ब्रिटिश सरकार ने एक सरकारी गजट जारी किया, जिसके अनुसार झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलने का आदेश दिया गया था। रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश अफसर एलिस द्वारा यह आदेश मिलने पर उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया और कहा ‘मेरी झाँसी नहीं दूगी’ और अब झाँसी विद्रोह का केन्द्रीय बिंदु बन गया। रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ अन्य राज्यों की मदद से एक सेना तैयार की, जिसमे केवल पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाएं भी शामिल थी। जिन्हें युध्द में लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था। उनकी सेना में अनेक महारथी भी थे, जैसे गुलाम खान, दोस्त खान, खुदा  बक्श, सुन्दर – मुन्दर,काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोतीबाई, दीवान रघुनाथ सिंह, दीवान जवाहर सिंह, आदि. उनकी सेना में लगभग 14,000 सैनिक थे। 

> वर्ष 1857 में, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया और क्रोध में वक्तव्य दिया “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी”। उसके बाद उन्होंने बड़ी बहादुरी से अपने बेटे के साथ (दामोदरराव को अपनी पीठ पर बाँधकर) अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। 

> 23 मार्च 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ। कुशल तोपची गुलाम गौस खां ने झांसी की रानी के आदेशानुसार तोपों के लक्ष्य साधकर ऐसे गोले फेंके कि पहली बार में ही अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए। रानी लक्ष्मीबाई ने सात दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंगरेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी ने खुलेरूप से शत्रु का सामना किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया।

> वे अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार हो, अंग्रेजो से युद्ध करती रहीं। बहुत दिन तक युद्ध का क्रम इस प्रकार चलना असंभव था। सरदारों का आग्रह मानकर रानी ने कालपी प्रस्थान किया। वहां जाकर वे शांत नहीं बैठीं।

> उन्होंने नाना साहब और उनके योग्य सेनापति तात्या टोपे से संपर्क स्थापित किया और विचार-विमर्श किया। रानी की वीरता और साहस को अंग्रेज मान गए, लेकिन उन्होंने रानी का पीछा किया। रानी का घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ, लेकिन रानी ने साहस नहीं छोड़ा और शौर्य का प्रदर्शन किया।

> कालपी में महारानी और तात्या टोपे ने योजना बनाई और अंत में नाना साहब, शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह आदि सभी ने रानी का साथ दिया। रानी ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहां के किले पर अधिकार कर लिया। विजयोल्लास का उत्सव कई दिनों तक चलता रहा लेकिन रानी इसके विरुद्ध थीं। यह समय विजय का नहीं था, अपनी शक्ति को सुसंगठित कर अगला कदम बढ़ाने का था।

> इधर सेनापति सर ह्यूरोज अपनी सेना के साथ संपूर्ण शक्ति से रानी का पीछा करता रहा और आखिरकार वह दिन भी आ गया जब उसने ग्वालियर का किला घमासान युद्ध करके अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मीबाई इस युद्ध में भी अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं।

> 18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ और रानी ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। वे घायल हो गईं और अंततः उन्होंने वीरगति प्राप्त की। ऐसी महान भारत को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थीं।

> अंग्रेज़ों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरि माना जाता है। 1857 में उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात किया था। अपने शौर्य से उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे। रानी लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थीं। उन्होंने न केवल भारत की बल्कि विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। उनका जीवन स्वयं में वीरोचित गुणों से भरपूर, अमर देशभक्ति और बलिदान की एक अनुपम गाथा है। 






FAQ'S-

1. रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम क्या था ?
> रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम चेतक था।

2. झांसी की रानी कैसे मारी गई ?
> झांसी की रानी की अंग्रेजो से युद्द करते समय गोली लगने से मौत हो गई थी।

3. महारानी लक्ष्मीबाई की जाति क्या थी ?
> महारानी लक्ष्मीबाई एक महाराष्ट्रीयन कराड़े ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थी।

4. रानी लक्ष्मी बाई जी की मृत्यु कब हुई थी ?
> 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में अंग्रेजो से युद्द करते हुए रानी लक्ष्मी बाई जी की मृत्यु हो गई।

5. झांसी की रानी के माता पिता कौन थे ?
> झांसी की रानी के पिता का नाम मोरोपन्त तांबे एवं माँ का नाम भागीरथी सपरे था।

6. महारानी लक्ष्मी बाई के कितने पुत्र थे ?
> झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के 2 बेटे थे जिनका नाम दामोदर राव और आनंद राव।

7. झांसी की रानी कितनी ऊंचाई से कूदी थी ?
> झांसी की रानी 285 मीटर की ऊंचाई से कूदी थी।

8. लक्ष्मीबाई के प्रिय खेल कौन कौन से थे ?
> लक्ष्मीबाई के प्रिय खेल नकली युद्ध करना, व्यूह की रचना करना और शिकार करना था

9. रानी लक्ष्मी बाई का नारा क्या था ?
> अंतिम सांस तक लड़ी थी वो मर्दानी। अंतरमन से कभी ना हारी। हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना।

10. लक्ष्मी बाई की तलवार कितने किलो की थी?
> लक्ष्मी बाई की तलवार 3.308 किग्रा की थी।

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