Kabir ke dohe कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित
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          कबीर दास जी हिन्दी साहित्य के एक महान कवि ही नहीं एवं समाज सुधारक भी थे, उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति और सकारात्मक विचारों के माध्यम से कई रचनाएं लिखीं और भारतीय संस्कृति के महत्व को समझाया। Kabir ke dohe इनमेसे एक है। जो काफी लोकप्रिय एवं जग प्रसिध्द है।   

        भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को जीवन जीने का सही मार्ग समझाया। Kabir ke dohe/कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित आज हम देखनेवाले है।   


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे


 सांई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाए।

में भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि हे ईश्वर मुझे बस इतना धन दीजिए, जिसमें मेरा परिवार आसानी से गुजारा कर सके और में भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाए।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि यदि हमारे सामने गुरु और ईश्वर दोनों एक साथ खड़े हो तो आपको किसके चरण छूने चाहिए ? गुरु का महिमा भगवान से श्रेष्ट है क्योंकी गुरु ने ही आपको अपने ज्ञान से ईश्वर का मार्ग बताया है, इसलिए हमें पहले गुरु के चरण छूने चाहिए।


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि हमें इस तरह से बोलना चाहिए कि सुनने वाला खुश हो जाए। दूसरे लोगों को भी खुश करे और खुद का मन भी प्रसन्न हो। इससे हमें ख़ुशी के बड़े आनंद का अनुभव भी मिलेगा। 


बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि जब मैने दूसरों में बुराई देखने का प्रयास किया तो मुझे कोई बुरा आदमी नही दिखा और जब मैंने अपने अंदर ही देखा तो मैंने पाया कि मुझसे बुरा तो कोई आदमी नही है। सबसे बुरा तो मै ही हु। 


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि खजूर का पेड़ बहुत बड़ा होता है लेकिन वह किसी को छाया भी नही देता है और फल भी बहुत दूर ऊंचाई पर लगते है। इसी प्रकार अगर कोई बड़ा आदमी किसी का भला नही करता है तो ऐसे बड़े होने से उसका कोई फायदा नही है।


जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि किसी साधु की जाति मत पूछो बल्कि उससे ज्ञान कि बातें ग्रहण कीजिए मतलब मोल भाव करना है तो तलवार का कीजिए, म्यान का मत कीजिए।


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि लोग बहुत ज्यादा पढ़ाई तो कर लेते है लेकिन कोई विद्वान नही बन पाता, यदि वो प्रेम के ढाई अक्षर भी पढ़ ले तो वह विद्वान बन सकता है।


माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए।

हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि मक्खी पहले तो गुड पर बैठ जाती है और बाद में स्वाद के लालच में उसी गुड पर अपने पंख और मुंह चिपका लेती है और जब उड़ने का प्रयास करती है तो उड़ नही पाती है इस कारण वह बाद में पछतावा करती है।


माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि धन और इंसान का मन कभी नही मरता है, इंसान का केवल शरीर मरता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नही मरती है।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।

में बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि लोग अगर प्रयास करे तो उनको कुछ न कुछ जरूर प्राप्त होता है लेकिन जो लोग डर के कारण कुछ करते ही नही है उनको जीवन भर कुछ मिल नही पाता।


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इंसान का शरीर विष से भरा होता है और गुरु अमृत की खान होता है। अगर आपको अपनी गर्दन कटवाने के बदले में कोई सच्चा गुरु मिल रहा है तो यह सौदा बहुत सस्ता होता है।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।

सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि अगर में इस पूरी धरती के बराबर कागज बना लूं और पूरे संसार के वृक्षों की कलम बना लूं तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नही है।


निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि हमें दूसरों की निन्दा करने वाले लोगों को अपने पास रखना चाहिए क्योंकि इस तरह के लोग अगर आप के पास रहते है तो आपकी बुराई बताते रहेंगे, इससे आप खुद को बेहतर बना पाएंगे।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इंसान दुःख में ईश्वर को याद करता है और सुख में ईश्वर की भूल जाता है। अगर सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए तो इंसान को दुःख ही नही आएगा।


माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि जब कुम्हार मिट्टी को रोंदता है तो मिट्टी कहती है आज तू मुझे रौंद रहा है लेकिन एक दिन ऐसा आएगा कि जब तू मिट्टी में मिल जाएगा तो में तुझे रौंदुंगी।


चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि चलती चक्की को देखकर मुझे रोना आ जाता है, क्योंकि चक्की के पाटो के बीच कुछ भी साबुत नही बचता है।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि जिस काम को आप कल करेंगे उसको आज करो और आज के काम को अभी करो क्योंकि पल में प्रलय हो जाएगी तो आप उस काम को कब करोगे क्योंकि समय हमारे पास बहुत कम है।


जग में बैरी कोई नही, जो मन शीतल होए।

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए।।


अर्थ – अगर आपका मन शांत है तो आपका इस संसार में कोई दुश्मन नही है और इंसान अपना अहंकार छोड़ दें तो हर कोई उस पर दया करने लग जाते है।


जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही।

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही।।


अर्थ – जिस घर में किसी साधु की पूजा नही होती है ऐसा घर तो मरघट के समान है जहां भूत प्रेत आत्माएं बस्ती है।


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि ऐसे नहाने से क्या फायदा जिससे मन का मैल साफ नही होता है, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वह साफ नही होती है, उसमे तेज बदबू आती है।


ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार।

हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार।।


अर्थ – यह संसार मिट्टी का बना हुआ है आपको ज्ञान अर्जित करने का जतन करना चाहिए क्योंकि इस मिट्टी के संसार में जीवन मरण तो चलता रहेगा।


आये है तो जायेंगे, राजा रंक फकीर।

इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।।


अर्थ – इस संसार में आए है तो एक दिन जाना भी है फिर चाहे वो राजा हो या फकीर, अंत समय में सबको एक ही जंजीर से यमलोक जाना है।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट।

अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट।।


अर्थ – इस संसार में अभी तुम जिंदा हो तो राम का नाम ले लो, नही तो जब तुम्हारा अंत समय निकट आएगा तो तुम्हे पछताना पड़ेगा।


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इंसान को धैर्य रखना चाहिए क्योंकि धीरे धीरे ही हर काम होता है, जैसे माली अपने पौधों को चाहे कितना भी पानी दे लेकिन फल तो समय आने पर ही आते है।


कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।।


अर्थ – जब हम पैदा हुए थे तो दुनिया हंसी थी और हम रोए थे इसलिए जीवन में कुछ ऐसा काम कर जाओ की जब हम मरे तो यह दुनिया रोए और हम हंसे।


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।


अर्थ – हिन्दुओं के लिए राम प्रिय है, मुस्लिमों के लिए अल्लाह प्रिय है, यह दोनों राम रहीम के चक्कर में लड़ मरते है लेकिन सत्य को कोई नही जान पाया है।


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।


अर्थ – इंसान हाथ में ईश्वर की माला लेकर फेरता है लेकिन उसका मन का फेर नही बदलता है इसलिए ऐसे इंसान को ईश्वर की माला ना जपकर अपने मन का बदलना चाहिए।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।


अर्थ – हमारी बोली एक अनमोल रत्न है, जब हम बोलते है तभी पता लगता है इसलिए हमें हमारे दिल के तराजू में तोलकर ही बोलना चाहिए।


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।।


अर्थ – हमें सब लोगो की सलामती की दुआ करनी चाहिए और ना किसी से दोस्ती करनी चाहिए और ना ही किसी से दुश्मनी करनी चाहिए।


इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़े बिछोह।

राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।।


अर्थ – एक दिन ऐसा आएगा जब हम सबको बिछड़ना पड़ेगा इसलिए हे राजाओं तुम लोग अभी से सावधान क्यों नही हो जाते हो।



Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


मानुष जन्म दुलभ है, देह न बारम्बार।

तरवर थे फल झड़ी पड्या,बहुरि न लागे डारि।।


अर्थ – मनुष्य जन्म दुर्लभ है, यह मानव शरीर बार बार नही मिलता है जैसे जो फल एक बार पेड़ से गिर जाता है वह पुनः दुबारा से उस डाली पर नही लगता है।


में में मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास।

मेरी पग का पैषणा मेरी गल की पास।।


अर्थ – ममता और अहंकार में मत पड़ो, यह मेरा है कि रट मत लगाओ यह विनाश के मूल कारण है। ममता पैरो की बेड़ी है और गले की फांसी है।


कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ।।


अर्थ – उस धन दौलत को एकत्रित करों जो हमें भविष्य में काम दे, सिर पर धन की गठड़ी बांधकर ले जाते किसी को नही देखा।


झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह।

झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह।।


अर्थ – जब झूठे आदमी से झूठा आदमी मिलता है तो उनमें प्यार बढ़ता है, लेकिन जब झूठे आदमी से सच्चा आदमी मिलता है तो उनमें प्रेम नही हो सकता है।


मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई।

कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई।।


अर्थ – मूर्ख व्यक्ति का साथ मत दीजिए, मूर्ख लोहे के समान है जो जल में तैर नही पाता है और डूब जाता है। संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है जैसे पानी की एक बूंद केले के पत्ते पर गिरकर कपूर, सीप के अंदर गिरकर मोती और सांप के मुंह में गिरकर विष बन जाती है।


मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।


अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि यदि आपने मन में हार मान लिया है तो आपकी पराजय निश्चित है और अगर आपने मन मे जीत का सोच लिया है तो आपकी जीत निश्चित है। इसी तरह हम ईश्वर को भी मन के विश्वास से प्राप्त कर सकते है और अगर भरोसा नही है तो किस तरह पाएंगे।


साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाही।

धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाही।।


अर्थ – एक सच्चा साधु भाव का भूखा होता है, धन का भूखा नही होता है, जो साधु धन का लोभी होता है वह साधु नही हो सकता है।


हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध।

कबीर परखै साध को ताका मता अगाध।।


अर्थ – एक जौहरी हीरे की परख जानता है, शब्दो की गहराई समझने वाला साधु होता है और जो साधु और असाधू को परख लेता है उसका मत अधिक गहन गंभीर है।


कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।

देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।।


अर्थ – जब तक यह शरीर है तब तक तुम कुछ न कुछ देते रहो, जब यह शरीर धूल में मिल जाएगा तब कौन कहेगा की दो।


Kabir ke dohe  कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित


धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।

अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।।


अर्थ – धर्म करने से, दान करने से धन दौलत नही घटती है जैसे नदी का पानी कभी नही घटता वह सदैव बहता रहता है।


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