How To Deal With Disappointment?

Disappointment

           

“Sometimes when you get disappointment it makes you stronger.”

– David Rushida

                                                       Meaning of Disappointment

          हम रोज कुछ ना कुछ नया कार्य करते है। लेकिन हर काम मे सफलता मिलेगी ही, ज़रूरी तो नहीं। बहोत बार हमें हार मानना होता है अर्थात हमारा काम विफल हो जाता है, ऐसे स्थिती मे मायूसी छा जाती है, आशा भंग हो जाती है। कुछ करने का मन नहीं होता है ऐसे स्थिती को हम Disappointment कहते है। कई लोग अपनी निराशा के माध्यमसे सफलता पूर्वक काम करते है। घटनाओंसे सीखते है, आगे बढ़ते है। लेकिन कई बार निराशा अवसाद का कारण भी बन सकती है।  

        किसीने सही कहा है,“Expectation is the root of all heartache.”  उम्मीद जब टूट जाती है तब निराशा की चोट लग जाती है। जब हम निराश हो जाते है तब ये कभी कम तो कभी ज्यादा चोट पहुँचता है। इसका सीधा असर हमारी भावनाओं से है।  ये चोट भरने मे काफी समय लेता है। वक़्त के साथ ये घाव भर तो जाता है लेकिन पीछे ज़िंदगीभर के लिए निशान छोड़ जाता है। लेकिन फिरभी हमें निराशा से अधिक उपयोगी तरीकेसे निपटना आना चाहिए। जब हम निराशा का अनुभव करते है तब हमारी आशाए और अपेक्षाए वास्तविकता के अनुरूप होती है। हम अपनी निराशाओंको कैसे प्रबंधित कर सकते है, चलो आगे देखते है।   


 

How to deal with Disappointment? 

         मेरे लिए निराशा जीवन की असहज भावनाओंमेसे एक है। जिसमे क्रोध, चोट, दुःख सब शामिल है। कभी कभी भावनाओंसे निपटना काफी जटिल हो जाता है। लेकिन मेरी आज की निराशा आनेवाले कल मे कोई बखेड़ा ना खड़ा कर दे, इसका मै पूरा ध्यान रखती हु। वास्तव मे भावनाओंका अनुभव करना हमें बहोत कुछ सिखाता है, चाहे कितना भी दर्दनाक हो, जीवन के सुंदर क्षणों मे से एक है इसलिए इसमे हमेशा शामिल रहो, इससे दूर मत हटो। क्योंकि ये एक ऐसी अद्भुत भावना है जिसे समझने के लिए हम खुद को समय देते है और खुदसे कहते है, मुझे अपनी परवाह है, मै इससे बाहर निकलूंगा और खुद को हर मुश्किल को लड़ने के लिए सक्षम बनाऊंगा। इसी तरह निराशा मुझे अपना मुल्य समझाती है, हर चुनौती के लिए तैयार करती है और साथ मे ही अपना ध्यान रखने की, अपने आप को समय देने की अनुमती देती है।     

Disappointment hurts And that’s OK.

            निराशा हमें नष्ट करने नहीं आती बल्कि हमें मजबूत तथा बेहतर बनाने आती है। सामान्य तौर पे हम निराशा को बड़ी मुस्कान मे छुपा लेते है। इसके बजाय हम कैसा महसूस करते है ? ये स्वीकार करे। क्योंकि ऐसा करने से हमारा दर्द कम होगा। मनुष्य के रूप मे भले ही हम जानते है कुछ चीज़ो को होना बाध्य है लेकिन हम उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं रहते। हम अपनी निराशा को चार चाँद लगा देते है और अपनी निराशा का जिम्मेदार दूसरों को ठहराते है। अक्सर निराशा तब होती है जब हम अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर आते है अर्थात कुछ नया करते है। नया करते वक़्त गलतियां तो होती ही है। लेकिन हमें गलतियां सुधारनी है नाकि निराश होना है। फिरसे योजना बनाओ और आगे बढ़ो। याद रहे, ज्यादा भव्य योजना ना बनाओ क्योंकि ये आपको फिरसे निराशा के तरफ ले जाएगी। ऐसा लक्ष्य निर्धारित करो जो आप आसानी से कर सके। 

            निराशा कभी भी मजेदार नहीं होती, चाहे आप एक रिश्ते को अकेले ही निभा रहे हो या फिर अपने करियर को आगे बढ़ाने का अवसर खो चुके हो। निराशा क्या है ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकी निराशा उतनी बुरी भी नहीं जितनी हम सोचते है। हमें निराशा का सामना ना करना पड़े इसलिए हमें क्या करना चाहिए, देखते है। 

DO EVERYTHING WITH A GOOD HEART & EXPECT NOTHING IN RETURN.....

YOU WILL BE NEVER DISAPPOINTED.

  • दुसरो से ज्यादा अपेक्षा ना रखे। अपेक्षा पूरी ना होने पर काफी दर्द होता है।  
  • अच्छी चीज़े मिलने के लिए समय लगता है, ज्यादा जल्दबाज़ी ना करे। संयम बनाये रखे। 
  • अगर आपको किसी बात से बुरा लगता है तो वो कहना सीखे, मन मे रखने से काफी तकलीफ होती है। 
  • अपनी अहमियत समझो, खुद के लिए समय निकालो। 
  • अपने आपसे उम्मीद बनाए रखे। यही खुशहाल ज़िन्दगी जीने की चाबी  है। 
  • आशावादी बने रहे। हर चीज़ को सकारात्मक नजरिये से देखे। 
  • नए अवसरों के लिए हमेशा खुले रहे। 


निराशा के बादल जब छाये हो,
आशा की किरण दिख जायेगी। 
रख विश्वास खुद पर तू प्यारे 
मंजिल खुदबखुद मिल जायेगी...

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