C V Raman - विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय

C V Raman - विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय


“जो काम आपके सामने है उसे पूरी हिम्मत और लगन से करें तो सफलता आपके पास जरूर आएगी” -  C V Raman

 C V Raman - विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय

            7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में जन्मे चंद्रशेखर वेंकट रमन देश ही नहीं, दुनिया के महान भौतिक शास्त्री थे। ब्रिटिश शासन के समय भारत के किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए विज्ञानी बनना आसान नहीं था। बहुत ही कम उम्र में C V Raman को पढ़ने का महत्व समझ में आ गया था, वह अपने दोस्तों से Mathematics और Physics पर किताबें अक्सर उधार ले लिया करते थे। आर्थिक स्थिरता के लिए उन्होंने भारतीय वित्त विभाग की परीक्षा दी और प्रथम आए। कोलकाता में असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बने।

            1933 में जमशेद जी नसरवानजी टाटा द्वारा स्थापित भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के निदेशक नियुक्त होने वाले C V Raman प्रथम भारतीय थे। 1947 में आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रीय प्रोफेसर कहलाए। 1948 में भारतीय विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त होने के बाद बेंगलुरु में ही रमन शोध संस्थान की स्थापना की, जिसके लिए 1934 में ही मैसूर की सरकार ने 10 एकड़ भूमि भेंट दे दी थी।


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           सीवी रमन ने साबित किया कि जब किसी पारदर्शी वस्तु के बीच से प्रकाश की किरण गुजरती है, तो उसकी वेवलेंथ (तरंग दैर्ध्य) में बदलाव दिखता है। इसे रमन इफेक्ट कहा जाता है। अपने इसी आविष्कार के लिए उन्हें 1930 में विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। सर सीवी रमन को विज्ञान के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए 1954 में भारत रत्‍न से नवाजा गया था।

          रमन इफेक्ट का इस्तेमाल आज भी कई जगहों पर हो रहा है। जब चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था। फॉरेंसिक साइंस में भी रमन इफेक्ट काफी उपयोगी साबित हो रहा है। क्योंकि अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी।

रोचक बातें -

> सीवी रमन ने विश्वविद्यालय के इतिहास में सर्वाधिक अंक अर्जित किए और उन्होंने आईएएस की परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया।

> सीवी रमन ने अपनी गवर्मेंट सर्विस छोड़ दी। उन्हें 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स का पहला प्रोफेसर नियुक्त किया गया था।

नोबेल पुरस्कार विजेता ऑप्टिकल थ्योरी के पीछे उनकी प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर, सीवी रमन ने कहा कि वह 1921 में यूरोप जाने के दौरान "भूमध्य सागर के अद्भुत नीले रंग के ओपेलेसेंस" से प्रेरित थे।

सीवी रमन न केवल प्रकाश के विशेषज्ञ थे बल्कि उन्होंने ध्वनिकी acoustics के साथ भी प्रयोग किया। तबला और मृदंगम जैसे भारतीय ढोल की ध्वनि की हार्मोनिक प्रकृति की जांच करने वाले सीवी रमन पहले व्यक्ति थे।

> सीवी रमन की पहली पुण्यतिथि पर भारतीय डाक सेवा ने सर सी वी रमन की एक स्मारक डाक टिकट प्रकाशित की थी जिसमें उनकी स्पेक्ट्रोस्कोपी और बैकग्राउंड में एक हीरा था।

पुरस्कार और सम्मान -

          चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जो हमें आगे देखते है - 

> वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया था।  

> ‘रमन प्रभाव’ की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। इस महान खोज की याद में 28 फ़रवरी का दिन भारत में हर वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 


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> वर्ष 1929 में सीवी रमन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस 16 वे सत्र की अध्यक्षता की। 

> 1929 में सी.वी रमन को उनके अलग-अलग प्रयोगों और खोजों के कई यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि, नाइटहुड के साथ बहुत सारे पदक भी दिए गए।

> 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला। सीवी रमन इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई थे।

> वर्ष 1954 में सीवी रमन को भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया। 

> वर्ष 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 


''अगर मेरे से सही से पेश आए तो आपका जीवन प्रकाशमय है और अगर गलत तरीके से पेश आए तो अंधकारमय होना निश्चित है'' -चंद्रशेखर वेंकट रमन


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C V Raman का समर्पण -

          काम करते समय एक दिन वह बेहोश हो गए उनके दिल/ Heart में कुछ परेशानी आ गई थी उस समय उन्हें बचा लिया गया लेकिन डॉक्टर ने कहा कि उनके पास गिनती के कुछ आखरी दिन बचे हैं। जब ये बात सीवी रमन को पता चली तब उन्होंने हॉस्पिटल में रहने से इंकार कर दिया क्योंकि वह अपने आखिरी दिन अपनी इंस्टिट्यूट में बिताना चाहते थे। 


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          अपने काम को लेकर वह कितने समर्पित थे इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अपनी मृत्यु के 1 दिन पहले ही इंस्टिट्यूट के काम के बारे में जानकारी लेने के लिए उन्होंने अपने इंस्टिट्यूट के मैनेजमेंट की मीटिंग ली। 21 नवंबर 1970 को 82 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान को कोई भी भुला नहीं सकता। 

C V Raman /चंद्रशेखर वेंकट रमन - विज्ञान का नोबेल जीतने वाले पहले भारतीय को शत शत नमन। 

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