अहंकार की बस एक खराबी है.....
ये कभी आपको महसूस ही नहीं होने देता कि आप गलत है ... !
एक समय की बात है. एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था. मूर्तिकला के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण उसने अपना संपूर्ण जीवन मूर्तिकला को समर्पित कर दिया. परिणामतः वह इतना पारंगत हो गया कि उसकी बनाई हर मूर्ति जीवंत प्रतीत होती थी. उसकी बनाई मूर्तियों को देखने वाला उसकी कला की भूरी-भूरी प्रशंसा करता था. उसके गाँव में ही नहीं, बल्कि उसकी कला के चर्चे दूर-दूर के नगर और गाँव में होने लगे थे.
ऐसी स्थिति में जैसा सामान्यतः होता है, वैसे ही मूर्तिकार के साथ भी हुआ. उसके भीतर अहंकार की भावना जागृत हो गई. वह स्वयं को सर्श्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा.
उम्र बढ़ने के साथ जब उसका अंत समय निकट आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने की युक्ति सोचने लगा. वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि वह उसके प्राण न हर सके. अंततः उससे एक युक्ति सूझ ही गई. उसने अपनी बेमिसाल मूर्तिकला का प्रदर्शन करते हुए १० मूर्तियों का निर्माण किया. वे सभी मूर्तियाँ दिखने में हूबहू उसके समान थीं. निर्मित होने के पश्चात् सभी मूर्तियाँ इतनी जीवंत प्रतीत होने लगी कि मूर्तियों और मूर्तिकार में कोई अंतर ही ना रहा. मूर्तिकार उन मूर्तियों के मध्य जाकर बैठ गया.
युक्तिनुसार यमदूत का उसे इन मूर्तियों के मध्य पहचान पाना असंभव था. उसकी युक्ति कारगर भी सिद्ध हुई. जब यमदूत उसके प्राण हरने आया, तो ११ एक सरीकी मूर्तियों को देख चकित रह गया. वह उन मूर्तियों में अंतर कर पाने में असमर्थ था. किंतु उसे ज्ञात था कि इन्हीं मूर्तियों के मध्य मूर्तिकार छुपा बैठा है. मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए उसकी पहचान आवश्यक थी. उसके प्राण न हर पाने का अर्थ था – प्रकृति के नियम के विरूद्ध जाना. प्रकृति के नियम के अनुसार मूर्तिकार का अंत समय आ चुका था.
मूर्तिकार की पहचान करने के लिए यमदूत हर मूर्ति को तोड़ कर देख सकता था. किंतु वह कला का अपमान नहीं करना चाहता था. इसलिए इस समस्या का उसने एक अलग ही तोड़ निकाला.
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उसे मूर्तिकार के अहंकार का बोध था. अतः उसके अहंकार पर चोट करते हुए वह बोला, “वास्तव में सब मूर्तियाँ कलात्मकतता और सौंदर्य का अद्भुत संगम है. किंतु मूर्तिकार एक त्रुटी कर बैठा. यदि वो मेरे सम्मुख होता, तो मैं उसे उस त्रुटी से अवगत करा पाता.”
अपनी मूर्ति में त्रुटी की बात सुन अहंकारी मूर्तिकार का अहंकार जाग गया. उससे रहा नहीं गया और झट से अपने स्थान से उठ बैठा और यमदूत से बोला, “त्रुटि?? असंभव!! मेरी बनाई मूर्तियाँ सर्वदा त्रुटिहीन होती हैं.”
यमदूत की युक्ति काम कर चुकी थी. उसने मूर्तिकार को पकड़ लिया और बोला, “बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती और तुम बोल पड़े. यही तुम्हारी त्रुटी है कि अपने अहंकार पर तुम्हारा कोई बस नहीं..” यमदूत मूर्तिकार के प्राण कर यमलोक वापस चला गया.
सीख – जिसने अपने मन में अहंकार को पाला है एक दिन उसका पतन निश्चित हैं. अहंकार विनाश का कारण है. इसलिए अहंकार को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए.
सबकुछ जीता जा सकता है "संस्कार" से !
जीता हुआ भी हारा जा सकता है "अहंकार" से !
10 Comments
Nicely written.
ReplyDeleteIgnorance more often begets confidence than does knowledge .... Real knowledge is to acknowledge the extent of one's ignorance
ReplyDeleteKhupch chan
ReplyDeleteBeautifully written
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery correct!
ReplyDeleteI agree with this theory. Beautifully composed writing
ReplyDeleteVery nicely written
ReplyDeleteNicely Written.
ReplyDeleteNice story n well said n written
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