रिश्ते हमारे ज़िन्दगी मे बहोत मायने रखते है। क्योंकि जन्म से पहलेही हमें कही रिश्ते मिल जाते है और बादमे कुछ रिश्ते हम बनाते है। ये रिश्ते ही है जो हमारी ख़ुशीयों को दोगुना करते है, मुश्किल घडी मे साथ देते है और दुखोंको कम करते है। रिश्तो को समझना, उसे संभाल रखना, रिश्तो को मजबूत बनाना और उसकी अहमियत समझना ये एक अच्छे इंसान की पहचान है। हम रिश्ते कैसे निभाते है। ये पूर्णतः हम पर निर्भर है। कभी कभी रिश्तो मे कड़वाहट आ जाती है और वो बिखर जाते है। रिश्ते काच की तरह बड़े नाज़ुक होते है। उसे हमे सावधानीसे संभालना चाहिए। हम सब कही ना कही भावनात्मक रूप से जुड़े होते है। इसलिए शायद हमें सही गलत का अंदाज़ भी नहीं होता। रिश्ते हमारी जीवन का चक्र है और इसे हमें सच्चाई के साथ निभाना चाहिए। चाहे वो रिश्ता माता पिता का हो, भाई बहन का हो या पति पत्नी का हो या और कोई रिश्ता हो।
रिश्ते कैसे निभाए जाते है ? रिश्तोंको सफल कैसे बनाया जाते है ? अच्छे रिश्ते कैसे बनाये जाते है? इतने सारे सवाल हमारे मन मे है। हमारे जीवन मे रिश्तो को सवारने के लिए हमे सर्वप्रथम प्राथमिकता देनी होगी। हमारा रिश्ता किस बुनियाद पे खड़ा है, वो हमें समझना होगा। रिश्तों की मजबूती आपसी समझ से ही तय होती है। अगर आप बिना कहे भी एक दूसरे की बातों तो समझ लेते हैं और एक-दूसरे की तरक्की में सहयोग देते हैं तो यकीन मानें कि आपके रिश्ते में गहराई है और आपका रिश्ता जीवनभर चल सकता है। किसी भी रिश्ते की गहराई इसी बात पर निर्भर करती है कि आप दोनों अपने जीवन की व्यस्तताओं के बीच भी एक-दूसरे को कितना समय दे पाते हैं। यही रिश्ते निभाने की खूबी है।
How to deal with relationship?
मै आपको एक कहानी बताती हु, एक पति पत्नी शहर मे रहते थे। अजय और नैना दोनों भी काम पे जाते थे। काम पर जाने का समय दोनों का अलग था पर आते वक़्त वो साथ ही आते थे। कभी आते आते गोलगप्पे के ठेले पे जाते तो कभी आइसक्रीम पार्लर मे। दोनों भी एक दूजे के साथ एकदम खुश दिखाई देते थे। दूसरे दिन अजय अपने बॉस को पगार बढ़ाने की बात करनेवाला था। वो जैसे ही ऑफिस पहुंचा,अपने कॅबिन मे गया। आज अजय थोड़ा बैचैन, थोड़ा चिंतित दिखाई दे रहा था। दोपहर मे वो धैर्य इकठा करते हुए बॉस की केबिन मे जा पहुंचा और पगार बढ़ाने की बात की। ख़ुशी की बात तो ये की बॉस भी मान गया। अजय की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मानो,अजय की पाँचो उंगलिया घी मे और सिर कढ़ाई मे था। ख़ुशी ख़ुशी अजय घर आता है। तब उसे खाने की टेबल पे पंचपक्वान, क्रॉकरी सेट, जलती हुई मोमबत्ती [candle light dinner] दिखाई देती है। नैना को रसोई घर से बाहर आते देख वो सैलरी बढ़ने की खुशखबर सुनाता है। नैना उसके हाथ मे एक कार्ड देती है, जिसपे लिखा होता है, ''अभिनंदन अजय! बहोत बहोत बधाई हो।'' दोनों ही आपस मे बात करते करते अपना खाना खाते है और खाने के अंत मे नैना जब मिठाई [dessert] लाने रसोई घर मे जाती है तब कुर्सी से उठते समय नैना की एप्रन [apron] से एक कार्ड गिरता है।[नैना को कार्ड गिरने का अंदाज़ा भी नहीं होता] उस पे लिखा होता है, ''अगर आपकी सैलरी नहीं बढ़ती है तो कोई बात नहीं। आप इससे भी ज़्यादा पाने के योग्य हो। मुझे आप पर पूरा भरोसा है, एक दिन आप जरूर सफल होंगे, ओर वो दिन ज्यादा दूर नहीं।'' ये पढ़ते ही अजय के आँखों मे आँसू आ जाते है। नैना का बेपनाह प्यार, भरोसा, समर्पण, दृढविशवास और स्वीकार्यता एक ही पल मे दिखाई दी। वो किसी सैलरी, बढ़ोत्तरी की मोहताज नहीं थी। हर रिश्ता एक नीव पे टिका होता है। और जो इसकी कदर समझ गया उसकी रिश्तो की डोर कभी टूट नहीं सकती। ना ही किसी के सामने कमज़ोर हो सकती है।
एक कहानी मे आपको ओर बताती हु, एक राम और शाम दोनोही बड़े अच्छे मित्र थे। दोनों ही एक ही कक्षा मे, एक ही पाठशाला मे पढ़ते थे। शाम थोड़ा नटखट था। अपनी हरकतोंसे हमेशा ही राम को परेशान करता रहता था। राम को एक बात पता थी, शाम को बोल के कोई फायदा नहीं, ये सुधरनेवालो मे से नहीं है। एक समय का दौर था। जब दोनों बहोत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। उनकी दोस्ती देखकर काफी लोगोंकी कोशिश चलती थी की उनकी दोस्ती मे दरार आ जाये। राम हमेशा शाम को समझाता था, पहले बातें परखो, सच को जानो, विश्वास करो और बादमे सही गलत का फैसला करो। राम को क्या पता था, सब बातें शाम युही हवा मे उछाल देगा। दोनों पढाई के साथ क्रिकेट खेलने मे भी माहिर थे। इस बार राष्ट्रिय स्तर के लिए चयन होनेवाला था। दोनों ही आमने सामने की टीम मे थे। राम जब बॉलिंग कर रहा था तो इक़्तिफ़ाक़ से बॉल शाम को लग गया और उसे चोट आ गई। इसी आधार पर शाम को खेलसे बाहर होना पड़ा। राम का राष्ट्रिय स्तर पर खेलने के लिए चयन हो गया। उन लोगों का इंतज़ार ख़तम हो गया, जो राम और शाम की दोस्ती तोडना चाहते है। शाम की कड़वाहट दिन पे दिन बढ़ती गई। वहा राम की कोई सफाई काम नहीं आई। राम अंदरसे पूरा टूट गया, वो अपने आप को कोस रहा था। दो महीने बाद परीक्षा थी, इसी दौरान शाम को बुखार आया। उसकी पढाई रुक गई। राम रोज़ के नोट्स बना के शाम के घर दे आता। शाम उसका लिखाण पहचान न पाए इसलिए राम ने अपना तरीका थोड़ा बदल लिया था। ये सिलसिला चले जा रहा था। एक दिन शाम के मम्मी ने राम को बताया, शाम नोट्स मिलने पर भी उदास रहता है। ना ही उसकी तबियत मे कोई सुधार है। हमेशा परेशान दिखाई देता है। तब रामने सोचा, शाम से मुलाकात का वक़्त आ गया है। वो वक़्त आ ही गया तब राम शाम के सामने खड़ा था। शाम गुस्से से काफी कुछ सुनाने लगा। उतने मे ही शाम की माँ आई और शाम को कहने लगी, बस करो शाम। कितना सुनाओगे ? रामकी कितनी इम्तिहान लोगे ? फिर शाम की माँ ने शाम को बीमार होने से लेकर अब तक का सारा किस्सा बताया। शाम की आँखे भी नम हो गई थी। दोनों काफी दिनों बाद गले मिले, सब शिकवे एक ही पल मे दूर हो गए। दोस्तीकी इम्तिहान दोनों पास कर गए।
हमारे जीवन मे भी अक्सर यही होता है। आमतौर पर देखा जाता है ग़लतफ़हमीसे रिश्ते टूटते है या फिर किसी तीसरे की हस्तक्षेप से। रिश्ता दोनों का है, तीसरे का क्या काम ? ग़लतफ़हमी तब होती है जब दोनों सिर्फ बोलना पसंद करते है, सुनना नहीं। हमेशा याद रखिये, रिश्ते ही हमारी सबसे मजबूत और उतनीही कमजोर कड़ी है। उसे हमें और मजबूत बनाना है या कमजोर ये हमारे हाथ मे है।
एक कहानी मे आपको ओर बताती हु, एक राम और शाम दोनोही बड़े अच्छे मित्र थे। दोनों ही एक ही कक्षा मे, एक ही पाठशाला मे पढ़ते थे। शाम थोड़ा नटखट था। अपनी हरकतोंसे हमेशा ही राम को परेशान करता रहता था। राम को एक बात पता थी, शाम को बोल के कोई फायदा नहीं, ये सुधरनेवालो मे से नहीं है। एक समय का दौर था। जब दोनों बहोत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। उनकी दोस्ती देखकर काफी लोगोंकी कोशिश चलती थी की उनकी दोस्ती मे दरार आ जाये। राम हमेशा शाम को समझाता था, पहले बातें परखो, सच को जानो, विश्वास करो और बादमे सही गलत का फैसला करो। राम को क्या पता था, सब बातें शाम युही हवा मे उछाल देगा। दोनों पढाई के साथ क्रिकेट खेलने मे भी माहिर थे। इस बार राष्ट्रिय स्तर के लिए चयन होनेवाला था। दोनों ही आमने सामने की टीम मे थे। राम जब बॉलिंग कर रहा था तो इक़्तिफ़ाक़ से बॉल शाम को लग गया और उसे चोट आ गई। इसी आधार पर शाम को खेलसे बाहर होना पड़ा। राम का राष्ट्रिय स्तर पर खेलने के लिए चयन हो गया। उन लोगों का इंतज़ार ख़तम हो गया, जो राम और शाम की दोस्ती तोडना चाहते है। शाम की कड़वाहट दिन पे दिन बढ़ती गई। वहा राम की कोई सफाई काम नहीं आई। राम अंदरसे पूरा टूट गया, वो अपने आप को कोस रहा था। दो महीने बाद परीक्षा थी, इसी दौरान शाम को बुखार आया। उसकी पढाई रुक गई। राम रोज़ के नोट्स बना के शाम के घर दे आता। शाम उसका लिखाण पहचान न पाए इसलिए राम ने अपना तरीका थोड़ा बदल लिया था। ये सिलसिला चले जा रहा था। एक दिन शाम के मम्मी ने राम को बताया, शाम नोट्स मिलने पर भी उदास रहता है। ना ही उसकी तबियत मे कोई सुधार है। हमेशा परेशान दिखाई देता है। तब रामने सोचा, शाम से मुलाकात का वक़्त आ गया है। वो वक़्त आ ही गया तब राम शाम के सामने खड़ा था। शाम गुस्से से काफी कुछ सुनाने लगा। उतने मे ही शाम की माँ आई और शाम को कहने लगी, बस करो शाम। कितना सुनाओगे ? रामकी कितनी इम्तिहान लोगे ? फिर शाम की माँ ने शाम को बीमार होने से लेकर अब तक का सारा किस्सा बताया। शाम की आँखे भी नम हो गई थी। दोनों काफी दिनों बाद गले मिले, सब शिकवे एक ही पल मे दूर हो गए। दोस्तीकी इम्तिहान दोनों पास कर गए।
हमारे जीवन मे भी अक्सर यही होता है। आमतौर पर देखा जाता है ग़लतफ़हमीसे रिश्ते टूटते है या फिर किसी तीसरे की हस्तक्षेप से। रिश्ता दोनों का है, तीसरे का क्या काम ? ग़लतफ़हमी तब होती है जब दोनों सिर्फ बोलना पसंद करते है, सुनना नहीं। हमेशा याद रखिये, रिश्ते ही हमारी सबसे मजबूत और उतनीही कमजोर कड़ी है। उसे हमें और मजबूत बनाना है या कमजोर ये हमारे हाथ मे है।
रिश्तो मे जरा संभल कर चलिएगा...
रिश्तो की कश्ती को हमने अक्सर
गलतफहमियों को शिकार होते देखा है।
13 Comments
True
ReplyDeleteबहोत खूब रिश्ते 💐💐💐💐💐
ReplyDeleteNice बहोत खूब श्रुती जी
ReplyDeleteBohot badhiya....
ReplyDeleteAll blogs are good, you should give part 2 also for some of the blog.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है... ऐसे ही लिखाते राहो
ReplyDeleteSuper
ReplyDeleteSuper
ReplyDeleteI have benefited a lot from visiting your site. Nice content and asome theme. Thank you Love you so much
ReplyDeleteKuch rishtey hame farishto se milate hai
ReplyDeleteJoh rishtey ko samjh gaya Maano woh Jindagi jeena samjh gaya
Bahut khoob
ReplyDeleteNicely written
ReplyDeleteBahot badhiya article 👏👏👏
ReplyDelete